१२ बैशाख २०८१, बुधबार

अवधी लघुकथा : महतारी कय ममता

“काल्पनिक कय साथ संसारिक लीला महिया आधारित”

महतारी हमेशा अपने लइकन कय खत्तिर परेशान रहत हिन।कमै रहत हय कि अपने महतारी कय ध्यान दियत हय।वैसे एक महतारी अपने लइकाके बहुत ध्यान से हर दिन कुछ बढीयां बनावैमे लाग रहत हिन।
समय बितत जात हय लइका बड़ा होय जात हय‌। लइका कय बियाह होय जात हय‌ । कुछ समय बितत हय लइका नउकरी पाय जात हय‌।वही समय महिया लइकेक जनमदिन परत हय । महतारी कय ममता नाई मानत हय, उ अपने लइका कय मन पसन्द खाना बनायके कार्यालय लयके जात हीं। वह्य पहूँचेक बाद एकठु छाेट कर्मचारी उन्हय देखत हय अब पहिचान जात हय कि हाकीम साहब कय महतारी हाेयं ,भीत्तर जायक अपने हाकिमसे कहत हय साहब बाहरवा आप कय माता जी आय हिन। तब लइका गुस्सायके घरे फोन करत हय ,अव कहत हय “घरमे काव भवा हय , जवन कि यहा माई आई हिन।”यतना कहत फोन काट दियत हय। अव अपने कर्मचारी से कहत हय कि जाव उनसे कहिदियो साहब काम करत हयं ,आपने घर जाव। जब यी कुल बात महतारी सुनत हि तब आंख मे आंस लयके घरे लौट जात हिन। रास्ता मे बहुत कुछ सोचत सोचत………… घर पहुँच कय वही बात मनम सोच बैठि रहत हिन।
साम जब लइका घर पहुँचत हय, तब पहिले आपन मन कय गुस्सा माहतारीक उपर निकाल कय शान्त करत हय।जब महतारी बतावत ही कि बेटा वहा हम कउनो काम दिए या कुछु मागय नाई गइ रहेन। आज तोहार जन्मदिन होय ‌, सबेरै हम तोहार मन पसन्द खाना बनाउतै रहेन वहि समय अफिस निकल गयाे रहा बाबु। मन कहिस तब हम अपने हाथेम लइके ताेहरे खत्तिर लइके गैरहेन।
जब कुल बातिया लडइका सुनत हय तब मनविगार कय रोवै लागत हय। महतारी अपने हात से आसुइया पोछत कहत हीं कि कउनो बात नाई बाबु ,तु समझ नाई पाय रहेव।
यही नाते कहत हय महतारी कय ममता कब्बो नाई कम होत हय। समय चाहे जवन होय महतारी अपने लइके बच्चेन कय गलत सोच नाई रख्खत हिन।अगर कुछ कहि दियत हि तो वहमा उनकय ममता झलकत हय।                                                                                          – देवानन्द ठाकुर, कपिलवस्तु

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