१५ बैशाख २०८१, शनिबार

“मनई मनई” अवधी कविता

” अवधीकविता ” ( मनई मनई)

हर चुप्पी मा मारि चौकड़ी
सोर बयिठा है
मनई मनई के जिव मा भैयवा
चोर बयिठा है ,
बच पावौ तव बच लियव
सोझवा के वार से
आज भेंडहा रुप बदले
मोर बयिठा है ,
नेर से बोलत है
केतना मीठ बोली
दयि रहा है उ मुला
बातिन कै गोली ,
हर वखत बीनत है
नवा जाल कवनव
न गली हाली
केहू कै दाल कवनव ,
है बहुत मुस्किल
बच कै निकर पायिब
नजर गाड़े बाघ अस
कुलि ओरि बयिठा है ,
मनई मनई के जिव…..

न केऊ आपन रहा
न केऊ बेगाना
खैंच लइगा बस तनिक
आगे जबाना ,
स्वार्थ का सेवा कै
नवा नाव मिलगा
जेस बेकार चीज कैहां
भाव मिलगा ,
जे रहे खाले
सभे उनका दबावैं
ऊंच वालेन् का
घास लग्गी से खवावैं ,
केतना सरल है
झूठ का अब सच बनाइब
करम अपने धरम का
अब गोडि बइठा है
मनई मनई के जिव मा……..

               रचनाकार - संजय अवधी   
                          गाेंडा

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