१३ बैशाख २०८१, बिहीबार

अवरोध से लोग घबरा जाते हैं

       

गंगेश कुमार मिश्र , कपिलबस्तु
गंगेश कुमार मिश्र , कपिलबस्तु

            कहते हैं कि जीवन का आरम्भ अपने रोने, जबकि अंत दूसरों के रोने से होता है और इस आरम्भ और अंत के बीच का समय भरपूर हास्य और प्रेम से भरा होना चाहिए। ऐसा इसलिए, क्योंकि यही सच्चा जीवन है। दरअसल जीवन एक लम्बी यात्रा के समान है, इसलिए इसमें अवरोध आने स्वाभाविक हैं, लेकिन ऐसे में कुछ लोग बुरी तरह घबरा जाते हैं और प्रेम-हास्य में भरा जीवन उन्हें दुखदायी लगने लगता है। वे ईश्वर को भला-बुरा कहने लगते हैं, लेकिन जब वे संकट से उबर जाते हैं तब उन्हें जीवन का असली मर्म समझ में आता है।

  “छोटी-छोटी बातों पर हतोत्साहित होने के बजाय अपने और परमात्मा पर विश्वास करना सीखना चाहिए “

    एक बार रामकृष्ण परमहंस के गले में नासूर हो गया तो उनके शिष्य बोले कि यदि वे अपने मन को एकाग्र करके यह कहें कि ‘ रोग चला जा ‘ तो उनको रोग मिट जाएगा।इस पर रामकृष्ण परमहंस बोले, जो  हृदय मुझे माँ का स्मरण करने के लिए मिला है उसे मैं सांसारिक काम में क्यों लगाऊँ ? उनके शिष्यों ने उनसे आग्रह किया कि आप माँ को ही कह दें कि वह आपको रोग मुक्त करें। रामकृष्ण परमहंस मुस्कुराते हुए बोले कि मैं ऐसे मूर्खता क्यों करूँ। माँ तो दयामयी, सर्वज्ञ और सर्व-समर्थ है। उन्हें मेरे कल्याण के लिए जो उचित लगेगा, वे वही करेंगी। मैं उनके कार्य में बाधा क्यों डालूँ ? शिष्यों के पास उनके इस तर्क का कोई उत्तर नहीं था।
दरअसल हमें जीवन में छोटी-छोटी बातों पर हतोत्साहित होने के बजाय अपने और परमात्मा पर विश्वास करना सीखना चाहिए।  

       

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